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भोर आ जाओ गगन में
सुनो संगी चमन वीरों तुम्हारा सत्य हो सपना
परम पुनीता इस धरा पर देवसरिता बह रही है
भाग्य विधाता लोकतंत्र के
गढ़वाली कविता- नृसिंगो घड़यालु
गढ़वाली कविता- पंचैती चौक
बसज्ञाल -घनाक्षरी
हाइकु
दोहे
होली दोहे
जिनको तू अपना कहता है
जब हमें तुम याद आये रात भर
साथ में जी लूं या जीते जी मर जाऊँ
जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए।
प्यार मुझको मिला तेरा सौगात में
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Mohit Negi Muntazir
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