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Thursday, 10 October 2024

गढ़वाली कविता- नृसिंगो घड़यालु

नृसिंगो घड़यालु लगयूं , गौं का सभी कट्ठा होयां
परिवारा सोरा भारा, कुछ कुछ त खट्टा होयां
कै पर क्वी दयबता औणु,कै पर घर्योंन लगयूं
क्वी क्वी ल्मस्टट होयां, कणपटये ते लट्ठा होयां।
कजयणयूँ की आज ब्याली,नाचणए खूब मौज आयीं
क्वी क्वी छन पुराणी धुराणी, क्वी कवि ने पस्वा होयिं।
खूब चनी खाणि लाणी, घड्याळया ते घी की माणी
क़त्ती त दयबते की, आड़ मां छन चटवा होईं।
जनानून त काम धाम ,छोडयूं च नों बाजा तक
कैकी हिम्मत जु बोलू ,रंक बाटिन राजा तक
पुंगड्यून जाणा कु जोंकी, हाती खोटी कुसाणी
चोंलूँ बतराड़ी लगोणि ,भीतर बीटीन छाजा तक ।
कजयणु की मौज आयीं , दयबते की आड़ मां
यकीन मारी लात चोट, फेंकी हॉकी झाड़ मा।
विन उठी चुफ्लू पकड़ी ,सेरा चोक उण्ड खकोडी
झम्म मुच्छयालू ऐथर करि , मुक धारी भाड़ मा।
कजयणु की मौज आयीं , दयबते की आड़ मां
सासु जी पर एगी दयवता,मारी टाडू ब्वारी पर
ब्वारीन भी बदला लिनी, नणद कन्या क्वारी पर
अब त उठी तख ब्याल, नणंद अर सासु पर
चिमटों की मार पड़ी , तईं निरभागी छोरी पर
जिठानीन भी भापि लिनी, मोके की चाल ढाल
तईं पर भी एगी अपरा, मैंतो कु खितरपाल।
यकीन पकड़ी सासु का यकीन नणदा का बाल
खूब करि झपोड़ा झपोडी, कजाणयूंगा व्हेन कुहाल।
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