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Friday 6 July 2018

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ये तो मिलते रहते हैं - मोहित नेगी मुंतज़िर

धन और दौलत नाम और शोहरत ये तो मिलते रहते हैं जीने के अंदाज़ तरीके ये तो मिलते रहते हैं। इतनी बस दरख़्वास्त हमारी आप हमारे घर आओ मंचों पे ...
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बूढ़ी सांसें (कविता) - मोहित नेगी मुंतज़िर

बूढ़ी सांसें चल रही थीं  सहारे लाठी के  मैं हथप्रभ था  झुका हुआ था शर्म से  और सोचता था  काश!  मैं कुछ कर पता...  मगर अफ़सोस!  इंसानि...
 

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