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Thursday, 10 October 2024

गढ़वाली कविता- पंचैती चौक


जबरी हमारा पूर्वजोंन
नयु नयु गों बसे होलु
तबरी अपणा कुडू बीच
चोडु पुंगड़ू बनै होलु
केन ह्युंद आण पर
अपणा गोरु बांधी होला
केन सूखे होला तख
अपणा गीला जुनखा झूला
सेरा गों की कज्याणी तख
घाम तापणो गे होली
बेखुं भी सुबेर ब्यखन
तेमा मैफिल रे होली
ते पुंगड़ो पंचैती क्नो
राजी व्हे होला सभी लोग
तब बणि स्यु माठु माठु
हमारा गों कु पंचैती चोक।

अब ते मा लगदी छे
चाँदनी गों का बयो बरातयूँ
थड्या चोंफला लगदा छा
रोज रोज देर रातयूं
5 साल मा पूसा मैना
तेमा पनो नाच्दा छा
गों का छोरा मास्टर दगड़ी
तेमा आखर बांचदा छा
गर्म्यु मा हमारा गों की
रामलीला होंदी छे
तेमा मण्डाण लगदु छो
देवी जस देंदी छे
कये लगी होलु लोगु पर
निरभागी पलायन कु रोग
अब त पड़ी पट्ट बांजा
हमारा गों कु पंचैती चोक।

आज धीरजु बरसूं बाद
उन्दू बटी गों मा ए
दादी दगड़ी द्वफरा मा
गों मा घुमण गे
द्वी बैठींन एक पुराणा
चुला डाला छेल मा
दुयुन खेंन वीं डालया
मीठा चुला गेल मा।
हमुन ये चोक बैठी
के बयो का ख़ाणा खायां
दादी की गलवाड़ीयूँ तक
डब डब छा आँसू आयां
कुजाणी कयेंन पड़ी होलु
येका भाग मा बिजोक
दादिन बोली ई च बाबा
हमारा गों कु पंचैती चोक

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